Sunday, August 15, 2010

क्या हम स्वतंत्र हो गए ?




















वतन
हमारा ऐसा जिसे छोड़े ना छोड़ पाए कोई ,
रिश्ता हमारा इससे कुछ ऐसा, के तोड़े तोड़ पाए कोई,

पुरे किये हैं हमने आज़ादी के ६४ साल अभी ,
मगर
क्या भारत हुआ है आज़ाद इतना मुझे बतलाये कोई,

आये कई नेता कई सरकारें गयी,
मगर बदली कोई तस्वीर,कई अफवाहें सुनी,

आज
भी रोटी नहीं मिलती है लोगों को कहीं,
किसान
आज भी मरता है खेतों में कहीं,

ये है वही देश जिसमे उगती हैं फसलें कई,
मगर कुपोषण से मरने वालों कि दरें हैं सबसे ज्यादा यहीं,

हो रही घायल मर्यादा हर मोड़ पर यहीं ,
भ्रस्टाचार
कि लगी है होड़ सी यहीं,

कहतें हैं हम स्वतंत्र हो गए, किन्तु अपने ही विचारों में कहीं परतंत्र हो गए,
बढ़ाएंगे
हम शान अपनी भारत माता का , अब तो सुनाये देने ये मंत्र भी बंद हो गए !

Thursday, August 12, 2010

सरहदें जोड़ दे !

रात के टुकड़ो पर पलना छोड़ दे,
हो सके तो हवाओं का रुख मोड़ दे,

कब तक चलेगी नफरत कि ये आंधिया,
कानों में कब तक बजेगी गोलियों कि ये शानायियाँ ,

कब तक बसेगी मुल्को में सिर्फ दहशत कि तन्हाईयाँ,
कब तक रहेगी लोगों में खौफ कि परछाइयां!

कब मिटेंगी ये गहरी नफरत कि खाइयाँ,
कब दूर होंगी माओं कि रुस्वाइयाँ,

गया है वक़्त अब रात कि परछाइयों में डरना छोड़ दे,
हो सके तो, दुश्मनी को छोड़ दोस्ती का सफ़र जोड़ दे ,
खून एक ही है सबका , इसको व्यर्थ ही बहाना छोड़ दे,
मुल्क कैसे हो गए दो, हो सके तो खुदा, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान कि सरहदें जोड़ दे!

Sunday, August 1, 2010

"आतंक को मिटाओ"

आखिर क्यूँ आज ,अहिंसा को त्याग लोग हिंसावादी हो गए,
जो पा सके मंजिल अपनी तो आतंकवादी हो गए!

कहतें हैं हम जान देगें अपनी कौम के लिए,
कोई पूछे जरा इनसे कि कहाँ से आई ये कौम इनकी,

अपनी कमज़ोरियों को छुपाने के लिए,आतंक का सहारा लेतें है कुछ लोग,
खुद को जिहादी ,तो कभी कौम के रखवालें बतलातें हैं ये लोग !

क्यूँ दुनिया में रहकर भी, दुनिया को मिटाने के मनसूबे बनातें हैं कुछ लोग ,
क्यूँ इंसानियत कि पाक राह को छोड़ कर, हैवानियत कि तरफ कदम बढ़ातें हैं लोग!

अपने मंसूबो को पूरा करने के लिए, क्यूँ मासूमों का खून बहातें हैं कुछ लोग,
आखिर क्यूँ शराफत की राह छोड़, आतंक कि राह अपनातें है कुछ लोग!

खुद भी उसी आतंक के साये तले हर रात बिताते है, वो कुछ लोग,
निकले थे जो कभी किसी कि हस्ती मिटाने, एक दिन खुद ही मिट जातें हैं ऐसे लोग,
दुनिया कि नज़र में सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही कहलातें है ऐसे लोग !

भूल जातें है आतंक को फैलाने वाले ये आतंकी लोग,
कि, आतंक से आज तक कोई भी जंग जीती नहीं जाती,
किया जाता है, हर मुसीबत का समाधान सोच विचार से,
ना कि निर्दोषों कि जान लेकर,गोलियों कि बोछार से !

"आतंक को मिटाओ, हर दुश्मनी मिट जायेगी,
प्यार को बढ़ाओ , तो बटी हुई ये सरहदें फिर से जुड़ जायेंगी,
मिलकर जो चलेंगे, हम तुम तो ये दुनिया फिर से एक जन्नत बन जायेगी!"