Saturday, January 15, 2011

चुनाव और राजनेता

बज गया ब्रिगुल, चुनावों कि हो रही हर तरफ शुरूवात है,
हलचल सी मच गई है, हवाओं में भी कुछ बात ख़ास है!

हर गली हर मुहल्ले में लग रहे हैं पोस्टर्स प्रचार के,
नेता जी भी दिख रहे हैं हाथ जोड़े, सड़क पर बिना किसी कार के!

एक तरफ तो हाथ है, दूसरी तरफ कमल का साथ है,
कहीं पर है साइकल, तो कहीं पर हाथियों का काफिला साथ है!

हर एक प्रत्याशी पाना चाहता हैं कुर्सी यहाँ,
जिसके लिये बहाता है पैसे वो पानी कि तरह,

सभी पार्टी एक दूसरे कि गलतियों का चिटठा खोलती हैं बस चुनावों में,
इसी वक़्त मिलकर बाटते हैं लोगो के दुःख दर्द, पैदल जा कर घर घर गाँव में !

मुद्दा होता है कभी महंगाई ,तो कभी घोटालों का पर्दाफाश होता है,
जीतता है प्रत्याशी जो बड़ा ही खुश होता हैं, हारने वाले फिर दूसरे कि गलतियों को ढूँढने में व्यस्त होता है !

किन्तु इन सभी के बीच में देश का एक आम आदमी सबसे ज़्यादा तकलीफ को सहता हैं ,
सभी घोटालों ओर भ्रस्टाचारों का कहर सिर्फ इसी पर पड़ता हैं !

देश तरक्की करता हैं, संसद भी चलता रहता हैं,
पास होते है गरीबों कि तरक्की के कई बजट, किन्तु काम सिर्फ पन्नो पर ही कहीं रह जाता हैं!

अनाज तो बहुत होता है मेरे भारत में, किन्तु तरक्की कि दुहाई दे कर, सब एक्सपोर्ट हो जाता हैं ,
और मेरे भारत का एक आम आदमी, आज भी बिना खाना खाए कई कई दिनों तक भूखा सो जाता है!

बात छोटी नहीं , समस्या बड़ी गम्भीर हैं, किन्तु आज के नेता फिर लकीर के फकीर हैं,
नहीं जानते आज तक कि देश को चलाना कैसे है, किन्तु फिर भी राजनीति कि संभाले ये ही सारी बाग़ डोर हैं !