Thursday, February 15, 2018

आज़ादी मिली हैं बलिदान से 



आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

 आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।

 व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
आज़ादी मिली हैं हमें  बड़े बलिदान से !!!

Friday, May 17, 2013

अपना भारत - दुनिया का सरताज

अपना भारत - दुनिया का सरताज


अपना भारत बनेगा दुनिया का सरताज

देश की जिसने सबसे पहले जीवन ज्योति जलाई

और घ्यान की किरने सारी दुनिया मे फैलाई

लोभ मोह के भ्रम से सारे जग को मुक्त कराया

मित्र भावना का प्रकाश सारे जग मे फैलाया

अनगनित बार बचाई जिसने मानवता की लाज

अपना भारत बनेगा सारी दुनिया का सरताज ll

Sunday, August 28, 2011

सफल हुआ अन्ना का अनशन




















गाँधी
को नहीं देखा हमने किन्तु उनके आदर्शों को आज जाना हैं,
अहिंसा में कितनी ताकत हैं , इस बात को आज सभी ने माना है!

कितनी ही सरकारें आयीं, कितने ही नेता बदले,
सबने अपनी सत्ता देखी, भारत कि तरक्की के बदले!

संसद को बनाया जनता ने, पर आज संसद पर जनता का क्यूँ कोई अधिकार नहीं,
कोई करना चाहे शांति से गर अनशन देश कि भलाई कि खातिर, तो क्यूँ संसद को ये स्वीकार नहीं!

एक अनशन करके अन्ना ने देश के हर आम आदमी कि तरफ से एक बुलंद आवाज़ उठायी हैं,
भ्रस्टाचार को कैसे दूर करना हैं, ये बात इन्होने अपने जन लोकपाल बिल मैं बड़े सरलता से समझाई हैं!

सरकार को मगर ये बातें थोड़ी देर से समझ आयीं हैं,
मगर ख़ुशी इस बात कि हैं कि देर से ही सही,
किन्तु भ्रस्टाचार को दूर करने के लिये सरकार ने अपनी सहमती तो जताई हैं!

आज सदियों बाद ऐसा लगता हैं कि देश में एक नई क्रांति ने ली अंगडाई हैं,
अन्ना ने हर आम आदमी को उसके हक़ ओर अधिकारों कि याद दिलाई हैं!

ओर समझाया हैं यही कि, जब कुछ करने का जज्बा सही हो तो जीत एक एक दिन मिल ही जाती हैं
राह कितनी ही मुश्किल क्यूँ ना हो मगर, अंत में राही को मंजिल मिल ही जाती हैं!

Saturday, January 15, 2011

चुनाव और राजनेता

बज गया ब्रिगुल, चुनावों कि हो रही हर तरफ शुरूवात है,
हलचल सी मच गई है, हवाओं में भी कुछ बात ख़ास है!

हर गली हर मुहल्ले में लग रहे हैं पोस्टर्स प्रचार के,
नेता जी भी दिख रहे हैं हाथ जोड़े, सड़क पर बिना किसी कार के!

एक तरफ तो हाथ है, दूसरी तरफ कमल का साथ है,
कहीं पर है साइकल, तो कहीं पर हाथियों का काफिला साथ है!

हर एक प्रत्याशी पाना चाहता हैं कुर्सी यहाँ,
जिसके लिये बहाता है पैसे वो पानी कि तरह,

सभी पार्टी एक दूसरे कि गलतियों का चिटठा खोलती हैं बस चुनावों में,
इसी वक़्त मिलकर बाटते हैं लोगो के दुःख दर्द, पैदल जा कर घर घर गाँव में !

मुद्दा होता है कभी महंगाई ,तो कभी घोटालों का पर्दाफाश होता है,
जीतता है प्रत्याशी जो बड़ा ही खुश होता हैं, हारने वाले फिर दूसरे कि गलतियों को ढूँढने में व्यस्त होता है !

किन्तु इन सभी के बीच में देश का एक आम आदमी सबसे ज़्यादा तकलीफ को सहता हैं ,
सभी घोटालों ओर भ्रस्टाचारों का कहर सिर्फ इसी पर पड़ता हैं !

देश तरक्की करता हैं, संसद भी चलता रहता हैं,
पास होते है गरीबों कि तरक्की के कई बजट, किन्तु काम सिर्फ पन्नो पर ही कहीं रह जाता हैं!

अनाज तो बहुत होता है मेरे भारत में, किन्तु तरक्की कि दुहाई दे कर, सब एक्सपोर्ट हो जाता हैं ,
और मेरे भारत का एक आम आदमी, आज भी बिना खाना खाए कई कई दिनों तक भूखा सो जाता है!

बात छोटी नहीं , समस्या बड़ी गम्भीर हैं, किन्तु आज के नेता फिर लकीर के फकीर हैं,
नहीं जानते आज तक कि देश को चलाना कैसे है, किन्तु फिर भी राजनीति कि संभाले ये ही सारी बाग़ डोर हैं !

Sunday, October 24, 2010

जनता और सरकार!














जनता
क्यूँ रोती है, ये कह कर हर बार,
कि हम सहते हैं महंगाई की मार, दोष देती हैं अक्सर की गलत है सरकार,
इसीलिए मची हुई है आज हर तरफ महंगाई की हाहा कार!

क्यूँ भूल जाती है जनता, की सरकार पर नहीं होता कोई एकाधिकार,
जनता
के बीच के लोगों से ही बनती है हर एक नई सरकार!

आप ही चुन कर लातें हैं अपना अपना उम्मीदवार,
सौपं देतें हैं उन्हें देश को चलाने का अधिकार,

क्यूँ नहीं करते चुनने से पहले नेताओं की पूरी जांच परताल,
की
राजनेता है आम लोगो का, या फिर केवल हैं कुर्सी का लाल!

क्यूँ चुनते हैं ऐसे लोगो को जिनका पिछला रिकॉर्ड होता नहीं साफ़,
कैसे कर देते हैं आप, मुजरिमों ओर बाहुबलियों को इतनी जल्दी माफ़,

वो नेता नेता कैसा, जिसकी कथनी और करनी में होता हैं अंतर हर बार,
फिर
भी जनता चुन कर लाती हैं ऐसे नेताओं को हर बार !

उठ
जाओं इस युग को रौशनी की और बढ़ाओ,
इसे अंधेरी दिशाओं में खो जाने से बचाओ!

कब तक रहोगे गूंगे बने, अब तो आवाज़ उठाओ,
भ्रष्टाचार के जाल को तोड़ कर , देश को तरक्की की ओर बढाओ !

Sunday, August 15, 2010

क्या हम स्वतंत्र हो गए ?




















वतन
हमारा ऐसा जिसे छोड़े ना छोड़ पाए कोई ,
रिश्ता हमारा इससे कुछ ऐसा, के तोड़े तोड़ पाए कोई,

पुरे किये हैं हमने आज़ादी के ६४ साल अभी ,
मगर
क्या भारत हुआ है आज़ाद इतना मुझे बतलाये कोई,

आये कई नेता कई सरकारें गयी,
मगर बदली कोई तस्वीर,कई अफवाहें सुनी,

आज
भी रोटी नहीं मिलती है लोगों को कहीं,
किसान
आज भी मरता है खेतों में कहीं,

ये है वही देश जिसमे उगती हैं फसलें कई,
मगर कुपोषण से मरने वालों कि दरें हैं सबसे ज्यादा यहीं,

हो रही घायल मर्यादा हर मोड़ पर यहीं ,
भ्रस्टाचार
कि लगी है होड़ सी यहीं,

कहतें हैं हम स्वतंत्र हो गए, किन्तु अपने ही विचारों में कहीं परतंत्र हो गए,
बढ़ाएंगे
हम शान अपनी भारत माता का , अब तो सुनाये देने ये मंत्र भी बंद हो गए !

Thursday, August 12, 2010

सरहदें जोड़ दे !

रात के टुकड़ो पर पलना छोड़ दे,
हो सके तो हवाओं का रुख मोड़ दे,

कब तक चलेगी नफरत कि ये आंधिया,
कानों में कब तक बजेगी गोलियों कि ये शानायियाँ ,

कब तक बसेगी मुल्को में सिर्फ दहशत कि तन्हाईयाँ,
कब तक रहेगी लोगों में खौफ कि परछाइयां!

कब मिटेंगी ये गहरी नफरत कि खाइयाँ,
कब दूर होंगी माओं कि रुस्वाइयाँ,

गया है वक़्त अब रात कि परछाइयों में डरना छोड़ दे,
हो सके तो, दुश्मनी को छोड़ दोस्ती का सफ़र जोड़ दे ,
खून एक ही है सबका , इसको व्यर्थ ही बहाना छोड़ दे,
मुल्क कैसे हो गए दो, हो सके तो खुदा, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान कि सरहदें जोड़ दे!