Sunday, October 24, 2010

जनता और सरकार!














जनता
क्यूँ रोती है, ये कह कर हर बार,
कि हम सहते हैं महंगाई की मार, दोष देती हैं अक्सर की गलत है सरकार,
इसीलिए मची हुई है आज हर तरफ महंगाई की हाहा कार!

क्यूँ भूल जाती है जनता, की सरकार पर नहीं होता कोई एकाधिकार,
जनता
के बीच के लोगों से ही बनती है हर एक नई सरकार!

आप ही चुन कर लातें हैं अपना अपना उम्मीदवार,
सौपं देतें हैं उन्हें देश को चलाने का अधिकार,

क्यूँ नहीं करते चुनने से पहले नेताओं की पूरी जांच परताल,
की
राजनेता है आम लोगो का, या फिर केवल हैं कुर्सी का लाल!

क्यूँ चुनते हैं ऐसे लोगो को जिनका पिछला रिकॉर्ड होता नहीं साफ़,
कैसे कर देते हैं आप, मुजरिमों ओर बाहुबलियों को इतनी जल्दी माफ़,

वो नेता नेता कैसा, जिसकी कथनी और करनी में होता हैं अंतर हर बार,
फिर
भी जनता चुन कर लाती हैं ऐसे नेताओं को हर बार !

उठ
जाओं इस युग को रौशनी की और बढ़ाओ,
इसे अंधेरी दिशाओं में खो जाने से बचाओ!

कब तक रहोगे गूंगे बने, अब तो आवाज़ उठाओ,
भ्रष्टाचार के जाल को तोड़ कर , देश को तरक्की की ओर बढाओ !

Sunday, August 15, 2010

क्या हम स्वतंत्र हो गए ?




















वतन
हमारा ऐसा जिसे छोड़े ना छोड़ पाए कोई ,
रिश्ता हमारा इससे कुछ ऐसा, के तोड़े तोड़ पाए कोई,

पुरे किये हैं हमने आज़ादी के ६४ साल अभी ,
मगर
क्या भारत हुआ है आज़ाद इतना मुझे बतलाये कोई,

आये कई नेता कई सरकारें गयी,
मगर बदली कोई तस्वीर,कई अफवाहें सुनी,

आज
भी रोटी नहीं मिलती है लोगों को कहीं,
किसान
आज भी मरता है खेतों में कहीं,

ये है वही देश जिसमे उगती हैं फसलें कई,
मगर कुपोषण से मरने वालों कि दरें हैं सबसे ज्यादा यहीं,

हो रही घायल मर्यादा हर मोड़ पर यहीं ,
भ्रस्टाचार
कि लगी है होड़ सी यहीं,

कहतें हैं हम स्वतंत्र हो गए, किन्तु अपने ही विचारों में कहीं परतंत्र हो गए,
बढ़ाएंगे
हम शान अपनी भारत माता का , अब तो सुनाये देने ये मंत्र भी बंद हो गए !

Thursday, August 12, 2010

सरहदें जोड़ दे !

रात के टुकड़ो पर पलना छोड़ दे,
हो सके तो हवाओं का रुख मोड़ दे,

कब तक चलेगी नफरत कि ये आंधिया,
कानों में कब तक बजेगी गोलियों कि ये शानायियाँ ,

कब तक बसेगी मुल्को में सिर्फ दहशत कि तन्हाईयाँ,
कब तक रहेगी लोगों में खौफ कि परछाइयां!

कब मिटेंगी ये गहरी नफरत कि खाइयाँ,
कब दूर होंगी माओं कि रुस्वाइयाँ,

गया है वक़्त अब रात कि परछाइयों में डरना छोड़ दे,
हो सके तो, दुश्मनी को छोड़ दोस्ती का सफ़र जोड़ दे ,
खून एक ही है सबका , इसको व्यर्थ ही बहाना छोड़ दे,
मुल्क कैसे हो गए दो, हो सके तो खुदा, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान कि सरहदें जोड़ दे!

Sunday, August 1, 2010

"आतंक को मिटाओ"

आखिर क्यूँ आज ,अहिंसा को त्याग लोग हिंसावादी हो गए,
जो पा सके मंजिल अपनी तो आतंकवादी हो गए!

कहतें हैं हम जान देगें अपनी कौम के लिए,
कोई पूछे जरा इनसे कि कहाँ से आई ये कौम इनकी,

अपनी कमज़ोरियों को छुपाने के लिए,आतंक का सहारा लेतें है कुछ लोग,
खुद को जिहादी ,तो कभी कौम के रखवालें बतलातें हैं ये लोग !

क्यूँ दुनिया में रहकर भी, दुनिया को मिटाने के मनसूबे बनातें हैं कुछ लोग ,
क्यूँ इंसानियत कि पाक राह को छोड़ कर, हैवानियत कि तरफ कदम बढ़ातें हैं लोग!

अपने मंसूबो को पूरा करने के लिए, क्यूँ मासूमों का खून बहातें हैं कुछ लोग,
आखिर क्यूँ शराफत की राह छोड़, आतंक कि राह अपनातें है कुछ लोग!

खुद भी उसी आतंक के साये तले हर रात बिताते है, वो कुछ लोग,
निकले थे जो कभी किसी कि हस्ती मिटाने, एक दिन खुद ही मिट जातें हैं ऐसे लोग,
दुनिया कि नज़र में सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही कहलातें है ऐसे लोग !

भूल जातें है आतंक को फैलाने वाले ये आतंकी लोग,
कि, आतंक से आज तक कोई भी जंग जीती नहीं जाती,
किया जाता है, हर मुसीबत का समाधान सोच विचार से,
ना कि निर्दोषों कि जान लेकर,गोलियों कि बोछार से !

"आतंक को मिटाओ, हर दुश्मनी मिट जायेगी,
प्यार को बढ़ाओ , तो बटी हुई ये सरहदें फिर से जुड़ जायेंगी,
मिलकर जो चलेंगे, हम तुम तो ये दुनिया फिर से एक जन्नत बन जायेगी!"










Monday, July 19, 2010

इंसान का बंटवारा

ईशवर ने हर इंसान को इंसान था बनाया,
बड़े प्यार से इस जहाँ को था सजाया,
किन्तु हम इंसानों ने ये क्या कर डाला,
धर्म और जाती के नाम पर, आज इंसान को ही बाट डाला!

बंटवारा किया ऐसा धरती का की,एक ही देश को दो टूकड़ो में बाँट डाला,
एक तरफ तो हिन्दुस्तान और दूजी और पाकिस्तान बना डाला,
विभिन्य फूलो की जहाँ एक हुआ करती थी माला,
उठते थे हाथ दरगाहों में दुआओं के लिए, बजती थी मंदिरों में घंटिया प्राथनाओं के लिए!

आज इंसानों ने तरक्की कुछ इतनी कर ली, की कई रॉकेट और मिसाइयल बना डालें,
तोड़ने के एक देश को कई हथियार बना डालें, लेकिन जोड़ने की कोई पहल ना कर पाये,
इंसानों का बंटवारा किया ऐसा की आज हर पहचान और रिश्तों को कहीं दूर छोड़ आये !

Saturday, July 17, 2010

{आशाएँ- मेरे सपनो के भारत की}

कल्पना एक ऐसे भारत की करती हूँ मैं अपने मन में ,
अपनापन जिसके जन जन में,खुशाली जिसके कड़-कड़ में,

प्रतिदिन जिसका सोने का हो,चाँदी सी जिसकी हो रातें,
सुख सुविधा की कही कमी ना हो,हर तरफ हो खुशियों की बरसातें!

मानव -मानव के नाते ही,जिसमें पहचाना जाता हो,
मानव से मानव का केवल,मानवता का ही नाता हो,

चाहे वो मानव ,किसी धर्म या किसी प्रांत का वासी हो,
किन्तु मन से सबसे पहले एक सच्चा भारतवासी हो!

कर्त्तव्य निभाने के हो आदि ,जिसके सब रहने वालें हों,
हो नहीं आलसी एक जहाँ,श्रम करके सब जीने वालें हों,

मेरे सपनो के भारत में,हर बचपन को हँसता पाऊं,
कर भ्रष्टाचार को दूर कहीं,सच्चाई की क्रांति ला पाऊं,

मेरे सपनो के भारत में किसी भी इंसान को,खाने पीने का कोई कष्ट ना हो,
हो सच्चा न्याय यहाँ,अधिकारी कोई भ्रष्ट ना हो!

मेरे सपनो का भारत वो जिसमें ऐसा इंसान ना हो ,
जिसके मुख-मंडल पर शोभीत, सिक्षा की मुस्कान ना हो,

मेरे सपनो के भारत में होगा शोषण अन्याय नहीं,
कोई भी गलत तरीके से पैदा करना चाहेगा आय नहीं ,
कितना सुन्दर मेरा भारत है -होगी सबकी बस राये यही !!