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Sunday, August 1, 2010

"आतंक को मिटाओ"

आखिर क्यूँ आज ,अहिंसा को त्याग लोग हिंसावादी हो गए,
जो पा सके मंजिल अपनी तो आतंकवादी हो गए!

कहतें हैं हम जान देगें अपनी कौम के लिए,
कोई पूछे जरा इनसे कि कहाँ से आई ये कौम इनकी,

अपनी कमज़ोरियों को छुपाने के लिए,आतंक का सहारा लेतें है कुछ लोग,
खुद को जिहादी ,तो कभी कौम के रखवालें बतलातें हैं ये लोग !

क्यूँ दुनिया में रहकर भी, दुनिया को मिटाने के मनसूबे बनातें हैं कुछ लोग ,
क्यूँ इंसानियत कि पाक राह को छोड़ कर, हैवानियत कि तरफ कदम बढ़ातें हैं लोग!

अपने मंसूबो को पूरा करने के लिए, क्यूँ मासूमों का खून बहातें हैं कुछ लोग,
आखिर क्यूँ शराफत की राह छोड़, आतंक कि राह अपनातें है कुछ लोग!

खुद भी उसी आतंक के साये तले हर रात बिताते है, वो कुछ लोग,
निकले थे जो कभी किसी कि हस्ती मिटाने, एक दिन खुद ही मिट जातें हैं ऐसे लोग,
दुनिया कि नज़र में सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही कहलातें है ऐसे लोग !

भूल जातें है आतंक को फैलाने वाले ये आतंकी लोग,
कि, आतंक से आज तक कोई भी जंग जीती नहीं जाती,
किया जाता है, हर मुसीबत का समाधान सोच विचार से,
ना कि निर्दोषों कि जान लेकर,गोलियों कि बोछार से !

"आतंक को मिटाओ, हर दुश्मनी मिट जायेगी,
प्यार को बढ़ाओ , तो बटी हुई ये सरहदें फिर से जुड़ जायेंगी,
मिलकर जो चलेंगे, हम तुम तो ये दुनिया फिर से एक जन्नत बन जायेगी!"