ईशवर ने हर इंसान को इंसान था बनाया,
बड़े प्यार से इस जहाँ को था सजाया,
किन्तु हम इंसानों ने ये क्या कर डाला,
धर्म और जाती के नाम पर, आज इंसान को ही बाट डाला!
बंटवारा किया ऐसा धरती का की,एक ही देश को दो टूकड़ो में बाँट डाला,
एक तरफ तो हिन्दुस्तान और दूजी और पाकिस्तान बना डाला,
विभिन्य फूलो की जहाँ एक हुआ करती थी माला,
उठते थे हाथ दरगाहों में दुआओं के लिए, बजती थी मंदिरों में घंटिया प्राथनाओं के लिए!
आज इंसानों ने तरक्की कुछ इतनी कर ली, की कई रॉकेट और मिसाइयल बना डालें,
तोड़ने के एक देश को कई हथियार बना डालें, लेकिन जोड़ने की कोई पहल ना कर पाये,
इंसानों का बंटवारा किया ऐसा की आज हर पहचान और रिश्तों को कहीं दूर छोड़ आये !
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeletevery nice poem depicting what man has done to GOD's creation.
ReplyDeleteआपकी कविता इस बात का प्रमाण है कि आप एक संवेदनशील और मानवता की समर्थक इंसान हैं। यह कितना दुःखद है कि हम व्यक्ति को और तो बहुत कुछ बनाना चाहते हैं, लेकिन उसे सच्चा इंसान नहीं बनने देना चाहते। हालांकि लोगों की भावनाओं को झकझोरने के लिये, लिखना भी एक तरीका है, लेकिन आज के निष्ठुर और जागकर भी सोये व्यक्ति को जगाने और झिंझोडने के लिये, इससे भी आगे बढकर कुछ करने की जरूरत है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति योगदान कर सकता है। लिखती रहो। शुभकामनाएँ।
ReplyDeletevery nice & true, good very good, keep doing the good work. u r truly a blessed writer.
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