Thursday, August 12, 2010

सरहदें जोड़ दे !

रात के टुकड़ो पर पलना छोड़ दे,
हो सके तो हवाओं का रुख मोड़ दे,

कब तक चलेगी नफरत कि ये आंधिया,
कानों में कब तक बजेगी गोलियों कि ये शानायियाँ ,

कब तक बसेगी मुल्को में सिर्फ दहशत कि तन्हाईयाँ,
कब तक रहेगी लोगों में खौफ कि परछाइयां!

कब मिटेंगी ये गहरी नफरत कि खाइयाँ,
कब दूर होंगी माओं कि रुस्वाइयाँ,

गया है वक़्त अब रात कि परछाइयों में डरना छोड़ दे,
हो सके तो, दुश्मनी को छोड़ दोस्ती का सफ़र जोड़ दे ,
खून एक ही है सबका , इसको व्यर्थ ही बहाना छोड़ दे,
मुल्क कैसे हो गए दो, हो सके तो खुदा, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान कि सरहदें जोड़ दे!

2 comments:

  1. I wish this could happened, but one day hopefully we'll all live a fearless life. Wonderful thought, really nice.

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  2. ... I liked your lines enormously ! My warm regards and respect to you !

    ... Dr. Debal Dasgupta

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